कुछ काम ऐसे हैं जो दिन में करने योग्य
हैं। अनजाने में ही हम इन कामों
को रात में भी करने लगे हैं। जबकि रात में इन कामों को करने से खुद का ही नुकसान होता है। इसलिए इन कामों
को शाम ढ़लने से पहले ही कर लेना चाहिए।
आजकल बहुत से व्यक्ति महत्वपूर्ण फैसले
रात में लेते हैं जबकि शोध से पता
चला है कि दिन में और खासकर सुबह के वक्त किए गए निर्णय ज्यादा सही और कामयाब होते हैं, जबकि दोपहर बाद लिए जाने वाले फैसले कम सही या गलत हो सकता है।
मनस्विद डा. एन फ्रेंकलिन का कहना है कि बेहद जरूरी नहीं हो तब रात के वक्त फैसले किए ही नहीं जाने चाहिए। डा. फ्रेकलिन ने अपने इस निष्कर्ष की पुष्टि में खुद अपने ही सत्तर फैसलों का हवाला दिया और कहा कि दोपहर के बाद किए गए फैसले तो असस्सी प्रतिशत तक गलत साबित होते हैं।
मनस्विद डा. एन फ्रेंकलिन का कहना है कि बेहद जरूरी नहीं हो तब रात के वक्त फैसले किए ही नहीं जाने चाहिए। डा. फ्रेकलिन ने अपने इस निष्कर्ष की पुष्टि में खुद अपने ही सत्तर फैसलों का हवाला दिया और कहा कि दोपहर के बाद किए गए फैसले तो असस्सी प्रतिशत तक गलत साबित होते हैं।
मनस्विदों के अनुसार इसकी वजह थकान,
हड़बडी़, काम
का दबाव है। लेकिन योग
के अनुसार सुबह के बाद दिन में क्रम से बढ़ते रहने वाला रजस और तमस है।
नोट : ये पोस्ट कही से भी कॉपी नहीं किया गया आप हमारी साईट पर बने रहे www.newstrick.net
पातंजल योग के प्रसिद्ध साधक संत स्वामी ओमानंद तीर्थ के अनुसार दिन की तरह मन के भी अपने अंधेरे और उजाले क्षण होते हैं। जब दिन का क्षण आता है, सुबह से तीन घंटे पहले तक तो हर चीज बहुत अच्छी लगती है। पर रात के वक्त चित्त की ऊर्जा क्षीण होने लगती है और उस वक्त लिए जाने वाले फैसले गड़बड़ाने वाले होते हैं। उदाहरण देते हुए स्वामीजी ने कहा है कि रात में क्षीण ऊर्जा के समय कोई निर्णय ले लिया जाए तो वह समझ का निर्णय नहीं होगा।
एक मामूली उदाहरण से भी समझा जा सकता है कि प्रकाश हो तो किसी को भी देख सकते हैं। अचानक बिजली चली जाए तो किसी को नहीं देख सकते; लगेगा कि जो लोग अभी दिखाई ते रहे थे वे और दूसरी तमाम चीजें नहीं दिखाई देंगी। इस स्थिति में क्या कहेंगे कि उन सब चीजों का और व्यक्तियों का अस्तित्व मिट गया है। ऐसा कहना बहुत जल्दबाजी का होगा।
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पातंजल योग के प्रसिद्ध साधक संत स्वामी ओमानंद तीर्थ के अनुसार दिन की तरह मन के भी अपने अंधेरे और उजाले क्षण होते हैं। जब दिन का क्षण आता है, सुबह से तीन घंटे पहले तक तो हर चीज बहुत अच्छी लगती है। पर रात के वक्त चित्त की ऊर्जा क्षीण होने लगती है और उस वक्त लिए जाने वाले फैसले गड़बड़ाने वाले होते हैं। उदाहरण देते हुए स्वामीजी ने कहा है कि रात में क्षीण ऊर्जा के समय कोई निर्णय ले लिया जाए तो वह समझ का निर्णय नहीं होगा।
एक मामूली उदाहरण से भी समझा जा सकता है कि प्रकाश हो तो किसी को भी देख सकते हैं। अचानक बिजली चली जाए तो किसी को नहीं देख सकते; लगेगा कि जो लोग अभी दिखाई ते रहे थे वे और दूसरी तमाम चीजें नहीं दिखाई देंगी। इस स्थिति में क्या कहेंगे कि उन सब चीजों का और व्यक्तियों का अस्तित्व मिट गया है। ऐसा कहना बहुत जल्दबाजी का होगा।
स्वामी ओमानंद की बात को अपनी तरह से
पुष्ट करते हुए फ्रेंकलिन ने कहा
है कि जिन सत्तर फैसलों की समीक्षा की गई उनमें चालीस सुबह के वक्त तय किए थे। उन चालीस कामों में पांच सात
ही नाकाम रहे। बाकी सभी के नतीते अच्छे ही रहे। सुबह का समय और शाम को दिन ढलने से पहले या दिन और रात
के मिलन काल को ध्यान उपासना के लिए
सर्वश्रेष्ट कहा गया है।
उसकी वजह भी यही है कि सूर्य के रहते तक आंतरिक ऊर्जा अधिक उर्वर स्थिति में रहती है। रात के अंधेरे में नाम स्मरण और स्वाध्याय जैसे उपाय का ही परामर्श दिया गया है। इस वक्त में किसी भी कठोर साधना के लिए मनाही है।
चिकित्सा विज्ञान का हवाला देते हुए डा. फ्रेंकलिन का कहना है कि औषध उपचार भी अक्सर दिन के समय ही किए जाते हैं। आकस्मिक या आपात चिकित्सा को छोड़ दें तो सभी दवाएं और इलाज दिन के समय ही किए जाते हैं। वजह सिर्फ यही है कि दिन के समय मनुष्य का मन, शरीर और स्वास्थ्य ज्यादा ग्रहणशील होता है।
उसकी वजह भी यही है कि सूर्य के रहते तक आंतरिक ऊर्जा अधिक उर्वर स्थिति में रहती है। रात के अंधेरे में नाम स्मरण और स्वाध्याय जैसे उपाय का ही परामर्श दिया गया है। इस वक्त में किसी भी कठोर साधना के लिए मनाही है।
चिकित्सा विज्ञान का हवाला देते हुए डा. फ्रेंकलिन का कहना है कि औषध उपचार भी अक्सर दिन के समय ही किए जाते हैं। आकस्मिक या आपात चिकित्सा को छोड़ दें तो सभी दवाएं और इलाज दिन के समय ही किए जाते हैं। वजह सिर्फ यही है कि दिन के समय मनुष्य का मन, शरीर और स्वास्थ्य ज्यादा ग्रहणशील होता है।
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