पठानकोट आतंकी हमले में शहीद हुए
एयरफोर्स गरुड़ कमांडो गुरसेवक की मां नहीं जानती थी कि दोपहर जिस बेटे का कुशलक्षेम पूछा है, शाम को शहादत की
खबर आ जाएगी।
एयरफोर्स कमांडो गुरसेवक ने घर पर फोन
कर परिजनों का हालचाल पूछा और अपनी
भी कुशलक्षेम उन्हे दी। पिता, पत्नी से बातचीत के बाद गुरसेवक ने मां से कहा- ‘मां
इस हफ्ते मेरा इंतजार न करियो, शायद में आ नहीं पाऊंगा...। लेकिन गुरसेवक की मां अमरीको को क्या
मालूम था कि नियति को कुछ और ही मंजूर है।
गुरसेवक (28) के
फौजी भाई हरदीप सिंह ने जब भाई के शहीद होने की सूचना घर पर दी, तो पूरा परिवार मर्माहत हो गया। एक अलग
कमरे में अपने हाथों की मेहंदी
और कलाइयों में पहनी सुहाग की चूडिय़ों को देखकर गुरसेवक पत्नी जसप्रीत कौर रोती-बिलखती रही। पड़ौसी औरतें उसे ढांढस बांधती
रही, लेकिन बार-बार वे भी यही दोहराती रही कि ‘जल्दी लौटने का वायदा कर गया था गुरसेवक...अब कहां है, कोई तो बताए...।
गुरसेवक के पिता भी फौज और बड़ा भाई
हरदीप भी फौज में थे। इसलिए गुरसेवक
ने भी फौज में ही रहकर देश की सेवा करने की ठान ली थी। पिता ने सुच्चा सिंह ने बताया कि पांच साल और
सात महीने पहले एयरफोर्स में ज्वाइनिंग
पाई। बेटा बहुत दलेर था और किसी से डरता नहीं था। उसे बचपन से ही खतरनाक काम करने का शौकिन था। एयरफोर्स
की गरुड़ कमांडो विंग का हिस्सा रहे
गुरसेवक की जाबांजी को उनके अफसर भी बहुत सराहते थे।
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